
नमन मंच,
मेरी कलम से,
“कल एक झलक जिंदगी की देखी ”
कल एक झलक जिंदगी की देखी जीने के लिए किसीको पल पल मरते देखा ।
जीने के लिए उसको भीख मांगते देखा नाक रगड़ते देखा ।।
यहाँ हम धुएं में उड़ा रहे जिंदगी मजाक में ले रहे जिंदगी को ।
ये अनमोल जीवन को बरबाद कर रहे महज शौक खातिर ।।
धुँआ धुआँ हो रही जिंदगी खाक हुई जा रही जिंदगी ।
पीछे रोने को अपनों को छोड़े जा रहे फर्ज कर्तव्य को पीछे धकेल ।।नजरंदाज कर रहे इंसानी रिश्ते अपने पराये के अहसास से आँख मिचोली खेल रहे ।।
करते नशा महज शौक के खातिर एक दिन
जकड़ वो लेता हमको
पकड़ कस कर लेता हमको ।
रेशा रेशा अंग का चूस लेता हड्डी हड्डी गला देते ये मादक पदार्थ ।।
बरबाद तुझको कर देता
कर्जदार तुझको कर कंगाल बना देता ।
दूर अपनों से सपनों से कर देता ये नशा ।।
पी कर जहर मरते तुम एक बार कर ये नशा मरते तुम बार बार ।
इसके सेवन से मति भरम हो जाती काबू वाणी विचार विवेक पर नहीं रहता ।।
नशे में भूल तुम जाते कुछ भी बोल जाते तार तार रिश्तों को कर जाते ।
बस फिर तुम अकेले हो जाते साथ सारे लोग मरने तुमको छोड़ जाते ।।
तब तब कुदरत बताती जिंदगी का मतलब क्या होता ।
जब पूरी तरह नशा नाश तेरा करता रोता भीख मिन्नत जिंदगी की माँगता
।
वर्षा उपाध्याय ,खंडवा.